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आम जीवन में और खासकर व्यापारिक जगत में यह आम बात है कि अगर आप आपसे ज्यादा धनवान और सफल व्यक्ति से मिलते हैं तो आप उससे जुड़े रहना चाहते हैं. क्योंकि, शायद, यह मानकर कि उस सफल व्यक्ति से घनिष्ठता आपको भी आपके व्यापार और निजी जीवन में सहायता करेगी. हर कोई अपने से बड़े और शक्तिशाली से संबंध बनाए रखना चाहता है, और उसकी शरण से वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है. शास्त्र कहते हैं कि सांसारिक जगत में हर कोई भयभीत है. अगर आप गौर से देखें तो एक पक्षी जब धरती पर दाना चुग रहा होता है तब निरंतर उसकी आंखें चारों और घूम रही होती है कि कभी भी उसे कोई बड़ा पक्षी या जंगली जानवर आ कर खा न ले. सच पूछो तो, पक्षी निडर होकर भोजन भी प्राप्त नहीं कर सकते. और यह भय पक्षी मात्र तक ही सीमित नहीं है – मनुष्य को हर समय भविष्य की चिंता लगी रहती है आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए, रोगों से दूर रहने के लिए और बुढ़ापे से बचने के लिए और जिंदगी भर प्रयास करता है और निरंतर विफल होते रहता है.
मनुष्य की चेतना अन्य जीवो की अपेक्षा ज्यादा विकसित होती है और इसी कारण उसे अपनी बुद्धि पर झूठा अभिमान रहता है, वह आसानी से किसी की शरण नहीं लेना चाहता – वह हमेशा ही मुसीबत से बचने के लिए अपने आप को धनवान और प्रशिक्षित करने में लगा रहता है, शायद यह जानकर कि मुसीबत के समय अपने ज्ञान और आर्थिक स्थिति के सहारे हर मुसीबत से बच सकेगा. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. नेपोलियन बोनापार्ट जैसे अजय और धनवान राजा जिसने पृथ्वी का अधिकतम भाग को जीत लिया था या फिर एक साधारण सा गरीब आदमी – हर किसी को मृत्यु का सामना करना पड़ता है.
जैसे हम व्यापारिक जगत में अपने आप को प्रगतिशील बनाए रखने के लिए अपने से बड़े और सफल लोगों से जुड़े रहते हैं उसी तरह जीवन में अभय पाने के लिए हमें भगवान की शरण में जाना चाहिए. अब प्रश्न यह उठता है कि हम भगवान की दया दृष्टि को कैसे आकर्षित कर सकते हैं.
इसका एक अच्छा उदाहरण महाभारत में हमें देखने को मिलता है. एक बार भीम को ऐसा विदित हुआ कि भगवान की दया दृष्टि पाने के लिए उन्हें भी अन्य संगीतकार और गीतकारो की तरह भगवान का गीत गाकर गुणगान करना चाहिए. इससे वे तुरंत भगवान का ध्यान आकर्षित कर सकेंगे. जैसा कि आप जानते हैं कि भीम विशालकाय और अत्याधिक बलशाली थे, जिन्होंने अकेले ही कौरव के सभी पुत्रों को युद्ध में मार गिराया था. उनके पास 10000 हाथियों का बल था. उनके लिए संगीत सीखना आसान नहीं था. लेकिन चूंकि सभी भीम से डरते थे किसी ने भी उनका विरोध नहीं करा. उन्होंने तुरंत ही एक संगीत के जानकार से शिक्षा लेनी प्रारंभ करी. परंतु संगीत परीक्षण के दौरान भीम की गर्जना इतनी तेज और कर्कश थी कि पूरे महल में एक अशांति का वातावरण छा गया. उनके संगीत के शिक्षक भी उन्हें बोलने में हिचकिचा रहे थे कि शायद संगीत उनके लिए नहीं है. अब बात युधिष्ठिर महाराज तक पहुंची, थोड़ा विचार करने के बाद महाराज ने द्रोपदी से कहा कि यह कार्य आप ही कर सकती हो. स्थिति को देखकर द्रौपदी ने भीम को कहा कि तुम्हें यहां शिक्षा का प्रशिक्षण महल के बाहर राज्य के प्रमुख द्वार के पास करना चाहिए, तभी आपकी उचित संगीत की शिक्षा हो सकेगी. लेकिन वहां पर भी उनके राज्य के लोग उन्हें देखकर और उनकी आवाज जो कि संगीत के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं थी उसे संकोच-वश कुछ कह नहीं पा रहे थे.
अब अचानक भीम को लगा कि सच्ची साधना तो मात्र जंगल में ही हो सकती है और वह जंगल में जाकर जोर-जोर से संगीत का रियाज करने लगे. थोड़ी देर बाद वहां पर एक धोबी आया और भीम को देखकर अचरज में रह गया. उसे देख भीम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा, उस साधारण मनुष्य ने डरते-डरते कहा कि वास्तव में मेरा गधा गुम हो गया है और आप के संगीत की आवाज सुनकर मुझे लगा कि शायद यहां पर वह चिल्ला रहा होगा. लेकिन यहां आकर देखा तो आप कि आप संगीत का रियाज कर रहे थे. यह सुनकर भीम को अत्याधिक दुख हुआ और उन्होंने तुरंत ही अपना संगीत का रियाज बंद करके कई दिनों तक शांत हो गए.
थोड़े दिनों के पश्चात युधिष्ठिर महाराज ने भीम को आदेश दिया कि द्वारकापुरी जाकर भगवान कृष्ण को इंद्रप्रस्थ लाने की कृपा करें. किन्ही कारणवश युधिष्ठिर महाराज का यह निर्देश भीम को स्मरण नहीं रहा और वह द्वारकापुरी जाकर भगवान कृष्ण को लेकर न आ सके. जैसे उपयुक्त अवसर आया अब युधिष्ठिर महाराज ने भीम से भगवान कृष्ण के साथ महल में उपस्थित होने को कहा, परंतु भीम के मुख को देखकर युधिष्ठिर महाराज को ऐसा लगा कि शायद वह कृष्ण को द्वारकापुरी से नहीं ला पाए हैं. युधिष्ठिर महाराज वहां से भीम को कुछ कहे बगैर रुष्ट होकर चले गए.
उस समय भीम को अपनी भूल का एहसास हुआ और बंद कमरे में जोर-जोर से रोने लगे कि हे भगवान मेरे से एक बहुत बड़ी गलती हो गई है भगवान कृष्ण आप जहां पर भी हो आप मुझ पर कृपा करें और मैं आपसे विनती करता हूं कि आप तुरंत इंद्रप्रस्थ में आने की कृपा करें. यह प्रार्थना जब भीम कर ही रहे थे अचानक से उनके द्वार पर खटखटाने की आवाज आई और युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि अरे भीम तुमने बताया नहीं कि तुम भगवान कृष्ण को लेकर आ गए हो, मैं अज्ञानता वश तुम पर क्रोध करने लगा. युधिष्ठिर महाराज की वाणी सुनकर और भगवान कृष्ण का मुख कमल मुक्त देखकर भीम को अत्याधिक आश्चर्य हुआ और मन ही मन भगवान कृष्ण को प्रणाम करने लगा.
युधिष्ठिर महाराज के जाने के बाद भीम ने भगवान कृष्ण को प्रणाम किया और कहा भगवान मैं आपका आभारी हूं. तब भगवान कृष्ण मुस्कुरा कर बोले हे भीम जब तुम अपनी पूरी शक्ति के साथ जोर लगाकर संगीत से मुझे आकर्षित करने का प्रयास कर रहे थे तब मैं तनिक भी तुम्हारे प्रयासों की ओर आकर्षित नहीं हुआ. लेकिन जब हताश होकर, और मुझ पर पूर्ण तरह आश्रित होकर, एक अच्छे शरणागत की तरह जब तुमने हृदय की गहराइयों से मुझे आवाज दी , तब वह रोना भी मुझे संगीत के मधुर स्वरों से प्रिय लगने लगा. क्योंकि उस समय तुम मुझ पर पूर्ण तरह आश्रित है. और मैं हमेशा ही अपने भक्तों की रक्षा के लिए तुरंत पहुंचता हूं.
भगवान श्री कृष्ण की कृपा के बगैर एक घास का पत्ता भी नहीं हिलता, जो कि सभी कारणों के कारण है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से आप को पार कर सकते हैं अगर उनका ध्यान आकर्षित करना है तो हमें विनम्र भगवान पर आश्रित और भगवान की दया के लिए हमेशा सच्चे मन से उन्हें याद करना चाहिए.
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