हनुमान जी भगवान राम के आदेश पर अपने वानर मित्रों के साथ माता सीता का पता लगाने निकल पड़े. चलते-चलते वह समुद्र के तट तक आ पहुंचे, अब समस्या थी कि समुद्र को पार कैसे करा जाए?
जामवंत, अंगद और हनुमान जी सभी गहन चिंतन में थे पर उन्हें कोई भी उपाय नहीं दिख रहा था.
अचानक एक दैविक योजना के चलते जामवंत ने हनुमान जी को उनकी भूली हुई शक्तियों का आभास कराया और देखते ही देखते हनुमान जी ने अपना आकार बड़ा किया. अब वह समुद्र पर चलांग लगाने को तैयार थे.
लेकिन चलांग लगाने के पूर्व हनुमान जी ने सभी वानर मित्रों से एक अनुरोध किया और कहां, “जब तक मैं माता सीता का पता लगा कर नहीं आता तब तक कोई भी भगवान राम के पास नहीं जाए”.
जिज्ञासा वश सभी वानरों ने इसका कारण पूछा तब हनुमान जी कुछ नहीं कहा बस शांत ही रहे.
लेकिन आचार्य हमें उनकी टिप्पणियों में बताते हैं कि हनुमान जी ऐसा क्यों किया. क्योंकि वह कोई भी कार्य का श्रेय स्वयं नहीं लेना चाहते थे. वह भगवान राम को यह बताना चाहते थे की माता सीता का पता सभी वानरों ने मिलकर लगाया. यह वास्तव में एक टीम वर्क था. वे अपने आप को भगवान राम का एक छोटा सेवक ही माना करते थे.
अगर आप वास्तव में सफलता के शीर्ष तक पहुंचाना चाहते हैं तो हमेशा एक अच्छी टीम बनाने का प्रयास करें.