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अगर आप बड़ी सफलता पाना चाहते हो तो आज से ही यह एक काम करना छोड़ दीजिए
सफलता के मायने हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकते हैं अगर आप सुख-शांति से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हो तो आपके लिए एक यह एक सफलता है या फिर आप एक उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज सेवा करना चाहते हो तो वह भी उसके लिए एक सफलता हो सकती है या इन सब से हटकर अगर कोई बहुत ही धनी व्यक्ति है जो कि हर दिन व्यापार की वजह से अलग-अलग शहरों में घूमता रहता है अगर वह हफ्ते में एक बार भी अपने सभी परिवार वालों के साथ डिनर करता है तो वह उसके लिए सफलता मानी जा सकती है.
दार्शनिक एरिस्टोटल के अनुसार 95% कार्य हम जो दिन भर में करते हैं वह हमारी आदतों से ही प्रेरित होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि अगर हमें जीवन में ऊपर उठना है तो हमारी आदतों को हमें सुधारना होगा. अच्छी आदतें हमें हमारे लक्ष्य की ओर ले जाती है और सफल बनाती है – इससे हमें आंतरिक खुशी और उत्साह मिलता है, लेकिन इसके विपरीत, बुरी आदत हमें हमारे लक्ष्य से दूर लेकर जाती है और यह हमारा मनोबल खत्म करती है जिससे हमारे जीवन में नकारात्मक ऊर्जा आने लगती है.
अध्ययनों से यह भी पता लगा है कि अगर हम एक लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं – भले ही वह बहुत छोटा ही क्यों ना हो इससे हमें उत्साह और दिशा मिलती है जिससे हम दूसरा लक्ष्य प्राप्त करते हैं जो पहले लक्ष्य से थोड़ा बड़ा होता है और ऐसा करते करते हम तीसरे, चौथे, पांचवें लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं – और देखते ही देखते हम एक बड़ा कार्य संपन्न कर पाते हैं.
अगर हम दुनिया के सफलतम उद्योगपति, लीडर या दार्शनिक की बायोग्राफी पढ़ते हैं तो उससे हमें यह बात स्पष्ट होती है कि वह अपने दिनचर्या ,का एक लंबा समय वह अपने आप से भी बातें किया करते थे. आज के मनोवैज्ञानिक इसे पॉजिटिव सेल्फ-टॉक भी कहते हैं. इस सेल्फ-टॉक में वह अपने आप को निरंतर वास्तविक स्थितियों से संपर्क बनाए रखते थे, आने वाली परेशानियां और उसके उपायों का मानसिक चित्रण करते रहते थे. पर इसमें विशेष गौर करने लायक बात यह है कि इस आकलन में वह सदैव पॉजिटिव-इनपुट देकरअपना स्वयं का मनोबल बढ़ाने के तरीके खोजा करते थे, वास्तविकता से भागा नहीं करते थे. इसी की वजह से उनके आसपास फैली हुई परेशानियां उन पर हावी नहीं हो पाती थी, वह शांति और संयम से बड़े से बड़ी परेशानियों से भी उभर पाते थे, क्योंकि उन्हें निरंतर पॉजिटिवऔर रचनात्मक आंतरिक मार्गदर्शन मिला करता था.
पर अब इसके विपरीत एक ऐसी कौन सी आदत है जिसके चलते हम जीवन में कभी भी ऊपर नहीं उठ सकते – बड़ी सफलता तो दूर हम रोजमर्रा का जीवन भी सुचारु रुप से जी नहीं सकते? और वह आदत है अपने आप से झूठ बोलना. इसमें उल्लेखनीय है कि जब हम दूसरों से झूठ बोलते हैं तब हमें पता होता है कि हम झूठ बोल रहे हैं और हमारे मस्तिष्क उसके लिए तैयार होता है, लेकिन अगर हम अपने आप से झूठ बोल रहे होते हैं तो यह हमारे लिए एक स्थाई मानसिकबीमारी निर्मित करता है. न्यूरो सर्जन का यह मानना है, कि अगर हम झूठ या गलत वाक्य बार-बार बोलते जाए तो इसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर प्रतिकूल पड़ने लगता हैऔर वही हम गलत या झूठ बात को भी सच मानने लग जाते हैं.
उदाहरण के लिए – अगर आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और आपको तुरंत ही पैसों की आवश्यकता पड़ने वाली है यह वास्तविकता जानने के बाद भी अगर आप आपके मस्तिष्क को यहां बोल रहे हो कि सब कुछ ठीक है और मुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है तो यह झूठा इनपुट आपको काल्पनिक परिस्थितियां निर्मित कर देगा- जिसके चलते आने वाले समय की परेशानियों से लड़ने के लिए आपके पास कोई उपाय नहीं होगा क्योंकि आपने आपके मस्तिष्क को वास्तविक स्थितियों का सही चित्रण नहीं कराया.
एक सामान्य व्यक्ति ऐसे कई गलत या झूठे इनपुट अपने मस्तिष्क को देता रहता है जैसे कि मेरी हेल्थ ठीक है और मुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, या फिर मेरे रिलेशन मेरे पार्टनर से अच्छे हैं और मुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, या मैं तो सही हूं और अच्छा हूं सारी परेशानियां दूसरे लोगों में ही हैं. अगर आप गौर करें तो आप एक जानकारी अपने मस्तिष्क को दे रहे हैं (मेरी हेल्प ठीक है) और दूसरी स्थिति आपके एक्शन की बता रहे हो कि अब आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, जो आपको एक कर्म हीन और परिस्थितियों का पराधीन बना देता है. यह लोग निश्चित रूप से अपनी वास्तविक और काल्पनिक दुनिया में असमंजस पाते हैं और धीरे-धीरे डिप्रेशन या फिर कई और मानसिक कष्टों से घिर रहते हैं. क्योंकि ऐसे इनपुट का सबसेमहत्वपूर्ण पहलू यह है कि आपके मस्तिष्क को यह भी बोल रहे हो कि अब आपको कोई भी कार्य करने की आवश्यकता नहीं है.
हमारे 20 साल के शोध से यह भी पता लगा है कि जो व्यक्ति एक काल्पनिक और झूठीअवस्था में रहता है वह कभी भी सफल नहीं हो सकता क्योंकि उसका वास्तविक स्थितियों से संपर्क टूट चुका है. उसके कोई भी कार्य वास्तविक परेशानियों को ठीक नहीं कर सकते क्योंकि उसे उन परेशानियों का अंदाज ही नहीं है, वह कुछ भी करके खुश नहीं हो सकता क्योंकि उसकी काल्पनिक स्थिति उसे कोई कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करती.
अगर आप एक व्यापारी होजो पिछले कई महीनों से अपने व्यापार में लगातार नुकसान उठा रहे हो और पर वास्तविकता से हटकर अगर आप निरंतर अपने आप को झूठ बोल रहे हो कि मेरा व्यवसाय ठीक चल रहा है – मुझे और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है तो निश्चित रूप से आप कोई भी एक्शन नहीं ले सकेगी. जो की पूर्णता गलत है अगर आप एक छात्र है और निरंतर अपनी पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं लेकिन यह जानने के बाद भी अगर आप अपने आप से झूठ बोल रहे हैं और वास्तविक स्थितियों से बच रहे हैं कि मुझे पढ़ाई करने की आवश्यकता नहीं है मैं वैसे ही इस कॉम्पिटेटिव एग्जाम में पास होने वाला हूं तो यह स्थिति आपको निश्चित रूप से असफल बनाएगी.
इस मानसिक स्थिति से उठने के लिए आपको दो कार्य करने पड़ेंगे – आपको हर हाल में अपने मस्तिष्क को वास्तविक (एक्चुअल सिचुएशन) ही बताना है जिससे भविष्य में आने वाली परेशानियों के लिए तैयार हो सके, पर याद रखिए आपका इनपुट वास्तविक होना चाहिए नेगेटिव नहीं. आप यह जरूर बता सकते हैं कि आपका व्यवसाय पिछड़ रहा है जो कि वास्तविक है और एक अच्छी खबर नहीं है लेकिन जो दूसरे इनपुट यह जाना चाहिए यह कि मैं किस तरह से इस परेशानी से ऊपर आ सकूं और सफल बन सकूं. आपका प्रश्न निश्चित रूप से नेगेटिव हो सकता है लेकिन जो उत्तर आप आपके मस्तिष्क से मांग रहे हो उसे हमेशा पॉजिटिव ही रखें ऐसा करने पर आप सफलता निश्चित ही पाएंगे.