बात 2013 की है, चाइना में एक लड़का बुरी तरह से वीडियो गेम की लत में पड़ चुका था. वह दिन के 15 से 18 घंटे तक मोबाइल गेम खेला करता था और उस काल्पनिक दुनिया की झूठी सफलता और खुशी को वास्तविक समझ कर एक सफल और आनंदमई व्यक्ति की तरह अपने वास्तविक जीवन में आचरण भी करता था. यह लक्षण निश्चित रूप से एक मानसिक बीमारी की ओर इशारा कर रहे थे.
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विचित्र बीमारियों को जन्म दे रहा है सोशल-मीडिया एडिक्शन
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जहां एक तरफ यह लड़का जीवन की वास्तविकता से दूर हो रहा था वहीं दूसरी ओर उसके माता-पिता पर पूरी तरह से अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित थे. उसी समय उसके पिता ने एक अद्भुत योजना सोची जो उसके बेटे को इस काल्पनिक माया जाल से निकाल सके.
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पिता ने थोड़ी जानकारी प्राप्त करने के बाद यह पाया कि उसका बेटा मात्र एक वीडियो गेम मे ही आसक्त है और उसी गेम पर उसको महारत हासिल करनी थी. फिर क्या था काफी खोज करने के पश्चात उस वीडियो गेम पर किन लोगों की महारत हासिल है उनसे संपर्क साधा और उसे अपने बच्चे को हराने के लिए कहा. इसके एवज में उस व्यक्ति ने अपने लड़के को हराने के लिए मुंहमांगी धनराशि देने का वादा किया.
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हारने के पश्चात यह लड़का अत्याधिक दुखी हुआ और तभी उसके पिता ने बताया कि उसकी हार महज काल्पनिक दुनिया की हार है और इस हार का वास्तविक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता. तुम अभी भी पूरी तरह से सक्षम और योग्य हो बस शर्त है कि तुम वास्तविक जीवन को जीना शुरू करो और काल्पनिक वीडियो गेम्स को मनोरंजन का साधन ही बनाए रखो.
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यह पिता अपने पुत्र के लिए मात्र इतना ही चाहता था कि उसका बेटा वास्तविकता के संपर्क में आए – जीवन के उतार-चढ़ाव को समझें, हार और जीत दोनों में ही कुछ सीखने का प्रयास करें और अपनी योग्यता अनुसार शिक्षा और वास्तविक जीवन के रिश्तो को निभाने का प्रयास करें.
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डिजिटल क्रांति की वजह से भविष्य में बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता के भीतर भी काल्पनिक जीत की लत एक चिंताजनक स्तर तक पहुंच सकती है. एक सर्वे के मुताबिक आज की युवा पीढ़ी औसतन 3 से 5 घंटे तक सोशल मीडिया व इंटरनेट पर मनोरंजन के साधन ढूंढती रहती है. अब हमें जरूरत है कि इस “स्क्रीन टाइम” को “रियल टाइम” में कैसे बदला जाए.
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इस लत को और बढ़ावा दे रही है लोगों का एकांकी होना, जरूरत से ज्यादा इच्छाओं को जगाना जिसका वास्तविक जीवन में पूरा होना लगभग असंभव है. यह लोग अमूमन भीतरी रूप से कमजोर, निराश और आपसी रिश्तो में अतृप्त होते हैं. बाहरी दुनिया के लोग इनका सम्मान भी नहीं करते और इसी सम्मान और जीत की खुशी को पाने के लिए यह काल्पनिक दुनिया का सहारा लेते हैं.
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एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी के मुताबिक सोशल मीडिया ने एक नई मानसिक बीमारी को जन्म दिया है, जिसमें, पीड़ित व्यक्ति अपने वातावरण से आसपास के लोगों से अत्याधिक पॉजिटिव आदान-प्रदान की उम्मीद लगाए रखता है और जब जो उम्मीदें वास्तविक तौर पर पूरी नहीं होती तो वह सहज ही डिप्रेशन और हताश होने लगता है. दुख की बात तो यह है कि सोशल मीडिया की वजह से वह अन्य लोगों की काल्पनिक सोशल मीडिया लाइफ को वास्तविक मान बैठता है और निरंतर अपनी वास्तविक लाइफ से तुलना करते रहता है जिससे वह कभी न खत्म होने वाले दुख से पीड़ित रहता है.
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इस मायाजाल से बचने के 3 सरल उपाय है अपने आप को और अपने बच्चों को सोशल मीडिया और इंटरनेट से एक नियंत्रित दूरी बनाए रखना चाहिए, दूसरा, हमें जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकार कर पारिवारिक रूप से एक साथ सुलझाना चाहिए, और तीसरा, प्रयास करके इमोशनल इंटेलिजेंस को विकसित कर हमारी सोच को निरंतर सकारात्मक बनाए रखना चाहिए.