महाभारत में यह बात उस समय की है जब द्रोपदी का स्वयंवर निश्चित हो चुका था. एक दिन पूर्व भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि है पार्थ, ” तुम्हें कल द्रौपदी स्वयंवर में भाग लेना है. क्योंकि स्वयंवर की शर्त बड़ी ही कठिन है और द्रौपदी एक दैविक शक्ति है इसलिए इस स्वयंवर का जितना तुम्हारे लिए और तुम्हारे भविष्य के लिए मंगलमय होगा.”
भगवान कृष्ण ने आगे कहा कि, “मुझे तुम्हारे धनुर्विद्या की निपुणता पर पूर्ण विश्वास है लेकिन मैं चाहता हूं कि कल तुम अत्यंत ध्यान पूर्वक मछली की आंख के ऊपर नजर रखना, अपने मन को शांत रखना और अपनी पूरी योग्यता इस कार्य को संपन्न कर देना.”
भगवान कृष्ण और अर्जुन में मित्र प्रेम भी था तभी अर्जुन ने चिमटी लेकर भगवान कृष्ण से पूछा की, “हे माधव मन को स्थिर मैं करूंगा, शारीरिक संतुलन बनाकर मैं रखूंगा, अपनी सांसों पर नियंत्रण मैं करूंगा और मछली पर निशाना भी मैं ही लगाऊंगा – तो माधव आप क्या करेंगे?
तभी भगवान कृष्ण एक गहरी मुस्कान के बाद बोले, “पर्थ मैं उस समय पानी को स्थिर कर दूंगा जो तुम्हारे वश में नहीं है.”
यह बोलने के बाद भगवान कृष्ण खिलखिला के हंस पड़े लेकिन यह सुनकर अर्जुन के हृदय ने भगवान कृष्ण को कोटि-कोटि प्रणाम किया.
साथियों हम हमारे कार्य में कितने निपुण और कुशल क्यों ना हो जाए लेकिन हमें हमेशा भगवान के आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए.
कई बार हमारे जीवन में छोटी-मोटी परेशानियों को झेलकर हम रुष्ट हो जाते हैं और भगवान के अस्तित्व पर ही शक करने लगते हैं लेकिन हमें यह स्मरण अवश्य रहना चाहिए की जो परेशानियां हमें मिल रही है वह एक निमित्त मात्र है. भगवान की कृपा से कई सारी परेशानियां हमें हमें छुए बगैर ही चली जाती है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि कई बार हमें लगता है कि जीवन की सारी उपलब्धियां और सफलताएं हमें हमारे परिश्रम और काबिलियत के परिणाम स्वरुप ही मिल रही है. लेकिन वास्तव में भगवान की सहमति के बगैर हमारे कोई भी कम हमें फल नहीं दे सकते. कृष्ण जो तीनों कालों को स्पष्ट देख सकते हैं वही हमारे सच्चे हितेषी है और वह ही हमें कर्मों के उपयुक्त फल प्रदान करने वाले हैं.